दोस्तों, इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन फेडरल सिस्टम ऑफ गवर्नमेंट को फॉलो करता है, यानी यहां सेंट्रल गवर्नमेंट के साथ-साथ पावर्स को स्टेट गवर्नमेंट में भी डिवाइड किया गया है। और इन्हीं पावर्स को एक्सरसाइज करने के लिए जिस तरह सेंट्रल गवर्नमेंट में पार्लियामेंट है, उसी तरह स्टेट गवर्नमेंट में स्टेट लेजिस्लेटर होता है। लेकिन हर स्टेट का स्टेट लेजिस्लेटर सेम नहीं होता क्योंकि किसी स्टेट में यूनिकैमरल यानी सिंगल हाउस वाला लेजिस्लेटर देखने को मिलता है, तो वहीं किसी स्टेट में बाइकैमरल यानी डुअल हाउस लेजिस्लेटर देखने को मिलता है। तो आखिर स्टेट लेजिस्लेटर कैसे फंक्शन करता है? इनमें डिफरेंट हाउसेस का फंक्शन क्या होता है?
दोस्तों, स्टेट लेजिस्लेटर का जिक्र भारतीय संविधान के आर्टिकल 168 में किया गया है। यह आर्टिकल कहता है कि स्टेट के लेजिस्लेटर में सिंगल या डुअल हाउसेस हो सकते हैं। जिस स्टेट में सिंगल हाउस होगा, वहां के लेजिस्लेटर को लेजिस्लेटिव असेंबली कहा जाता है। और जिन स्टेट्स में डुअल हाउस होता है, वहां एक हाउस को स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली और दूसरे हाउस को स्टेट लेजिस्लेटिव काउंसिल कहते हैं। करेंटली, इंडिया के 28 स्टेट्स में से सिर्फ 6 स्टेट्स में लेजिस्लेटिव काउंसिल एग्जिस्ट करती है। ये स्टेट्स हैं आंध्र प्रदेश, कर्नाटका, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश।
इसके अलावा, जिस तरह से सेंट्रल लेजिस्लेटर में लोकसभा और राज्यसभा के अलावा प्रेसिडेंट भी लेजिस्लेटर का पार्ट होते हैं, उसी तरह स्टेट लेजिस्लेटर में हाउसेस के अलावा गवर्नर भी लेजिस्लेटर का एक इंपॉर्टेंट पार्ट होते हैं। दोस्तों, सबसे पहले स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली यानी विधानसभा को समझते हैं। स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली को लोअर हाउस भी कहा जाता है क्योंकि इसे टर्म खत्म होने से पहले डिजॉल्व किया जा सकता है।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 170 में लेजिस्लेटिव असेंबली के कंपोजिशन की बात की गई है। यह आर्टिकल कहता है कि किसी भी स्टेट की लेजिस्लेटिव असेंबली में 500 से ज्यादा मेंबर्स नहीं हो सकते। भारत की स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली में सबसे ज्यादा स्ट्रेंथ उत्तर प्रदेश लेजिस्लेटिव असेंबली की है, जहां 403 मेंबर्स इलेक्ट होकर आते हैं। साथ ही, प्रोविजन यह भी है कि लेजिस्लेटिव असेंबली में 60 से कम मेंबर्स नहीं हो सकते, लेकिन स्पेशल केसेस में मिनिमम स्ट्रेंथ इससे भी कम हो सकती है। उदाहरण के लिए, सिक्किम लेजिस्लेटिव असेंबली में सबसे कम 32 मेंबर्स हैं। इससे भी कम मेंबर्स पुडुचेरी में हैं, जहां सिर्फ 30 लेजिस्लेटिव असेंबली मेंबर्स हैं, लेकिन यह स्टेट नहीं बल्कि एक यूनियन टेरिटरी (UT) है
सिर्फ यही नहीं, स्टेट लेजिस्लेटर में मेंबर्स की स्ट्रेंथ आर्टिकल 333 के प्रोविजंस पर भी डिपेंड करती है क्योंकि इस आर्टिकल के अकॉर्डिंग स्टेट का गवर्नर असेंबली में एंग्लो इंडियंस का रिप्रेजेंटेशन ना होने पर उन्हें हाउस में नॉमिनेट कर सकता है। स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली के मेंबर बनने के लिए बेसिक एलिजिबिलिटी है कि कैंडिडेट का इंडियन सिटीजन होना चाहिए और उसकी ऐज कम से कम 25 साल होनी चाहिए। इसके बाद, कैंडिडेट इलेक्शन के लिए विधानसभा कांस्टीट्यूएंसी से अपना नॉमिनेशन फाइल कर सकता है। फिर इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया द्वारा स्टेट में विधानसभा इलेक्शंस ऑर्गेनाइज किए जाते हैं। इलेक्शन में एलिजिबल वोटर्स अपने किसी एक फेवरेट कैंडिडेट के लिए वोट करते हैं, फिर वोट्स की काउंटिंग होती है, और जिस कैंडिडेट को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, वो कैंडिडेट उस कंस्टीट्यूएंसी से इलेक्शन जीत जाता है। इस टाइप के इलेक्शन सिस्टम को फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम कहते हैं। इलेक्शन जीतकर वह एमएलए यानी मेंबर ऑफ लेजिस्लेटिव असेंबली या विधायक बन जाता है।
इसी तरह से स्टेट की अलग-अलग कंस्टीट्यूएंसी से इलेक्शन जीतकर एमएलए बनकर कैंडिडेट्स विधानसभा में पहुंचते हैं। ये सभी कैंडिडेट्स किसी पॉलिटिकल पार्टी के सिंबल पर या फिर इंडिपेंडेंट कैंडिडेट के रूप में इलेक्शन लड़ते हैं। विधानसभा पहुंच कर यह देखा जाता है कि किस पॉलिटिकल पार्टी के मैक्सिमम एमएलए विधानसभा में मौजूद हैं। मैक्सिमम एमएलए वाली पॉलिटिकल पार्टी अपना एक लीडर चूज करती है और यह लीडर गवर्नर के सामने चीफ मिनिस्टर बनने के लिए अपनी दावेदारी पेश करता है। यानी जरूरी नहीं है कि चीफ मिनिस्टर स्टेट लेजिस्लेटर का मेंबर हो, लेकिन 6 महीने के अंदर उसे स्टेट लेजिस्लेटर की मेंबरशिप हासिल करनी होगी।
अब अगर गवर्नर की नजर में उस पॉलिटिकल पार्टी के पास क्लियर मेजॉरिटी है और चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट के पास मेजॉरिटी मेंबर्स का सपोर्ट है, तो उस लीडर को चीफ मिनिस्टर के रूप में अपॉइंट किया जाता है। अगर किसी पॉलिटिकल पार्टी को क्लियर मेजॉरिटी नहीं मिल पाती, तो ऐसी स्थिति में मेजॉरिटी सीट्स वाली पॉलिटिकल पार्टी दूसरी सीटों और इंडिपेंडेंट कैंडिडेट्स के साथ मिलकर कोलिशन गवर्नमेंट भी फॉर्म कर सकती है। इसे रिसेंटली बिहार में हुए पॉलिटिकल टर्मोइल के साथ रिलेट करके समझा जा सकता है। बिहार विधानसभा इलेक्शन के बाद जेडीयू और आरजेडी ने कोलिशन में गवर्नमेंट की फॉर्मेशन की और इस कोलिशन के लीडर थे नीतीश कुमार, जिन्हें चीफ मिनिस्टर अपॉइंट किया गया। लेकिन फिर नीतीश कुमार ने इस कोलिशन को तोड़ लिया और बीजेपी के साथ दोबारा कोलिशन किया। बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर उन्होंने हाउस में मेजॉरिटी प्रूफ की और फिर सीएम के रूप में बने रहे।
अगर किसी भी पार्टी के पास क्लियर मेजॉरिटी ना हो, तो गवर्नर सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को भी गवर्नमेंट फॉर्म करने के लिए इनवाइट कर सकता है। लेकिन इस इन्विटेशन के बाद उस सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को हाउस के फ्लोर पर अपनी मेजॉरिटी प्रूव करनी होगी, और अगर वह सिंगल लार्जेस्ट पार्टी मेजॉरिटी प्रूव नहीं कर पाती, तो स्टेट में री-इलेक्शन घोषित किया जा सकता है।
दोस्तों, चीफ मिनिस्टर की अपॉइंटमेंट के बाद, गवर्नर के रिकमेंडेशन पर गवर्नर द्वारा काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स को अपॉइंट किया जाता है। ये काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की रिस्पांसिबिलिटी विधानसभा के प्रति होती है और अगर काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स विधानसभा में अपना कॉन्फिडेंस लूज कर देती है, तो सरकार गिर जाती है। जिस तरह से लोकसभा की फंक्शनिंग के लिए लोकसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को अपॉइंट किया जाता है, उसी तरह स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली की फंक्शनिंग के लिए प्रेसाइडिंग ऑफिसर्स की जरूरत होती है। इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन का आर्टिकल 178 कहता है कि स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली में एक स्पीकर और एक डिप्टी स्पीकर होना चाहिए। ये दोनों प्रेसाइडिंग ऑफिसर्स स्टेट लेजिस्लेटिव मेंबर्स द्वारा हाउस से ही चूज किए जाते हैं और ये दोनों रूल्स को फॉलो करवाने, इलेक्शन कनडक्ट कराने जैसे कामों में स्पीकर की हेल्प करते हैं।
जिस तरह से लोकसभा और राज्यसभा में सेंटर का बजट पास किया जाता है, उसी तरह स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली में स्टेट का सालाना बजट पास किया जाता है। इसके अलावा, स्टेट की एग्जीक्यूटिव पॉलिसीज, स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली में ही बनती हैं, जिन्हें स्टेट गवर्नमेंट इंप्लिमेंट करती है। और यह असेंबली मेंबर्स का काम होता है कि वे गवर्नमेंट की पॉलिसीज की पब्लिक वेलफेयर के आधार पर क्रिटिसिज्म करें। स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली के अलावा स्टेट के लेजिस्लेटर का एक हाउस होता है, स्टेट लेजिस्लेटिव काउंसिल। अगर यह काउंसिल किसी स्टेट के लेजिस्लेटर में है, तो वह स्टेट का अपर हाउस कहलाता है।
इस हाउस का जिक्र भारतीय संविधान के आर्टिकल 169 में किया गया है, जो कहता है कि अगर पार्लियामेंट चाहे तो स्टेट लेजिस्लेटिव काउंसिल को एबोलिश या क्रिएट कर सकती है। आर्टिकल 171 में स्टेट लेजिस्लेटिव काउंसिल के कंपोजिशन की बात की गई है। स्टेट लेजिस्लेटिव काउंसिल को भारत की राज्यसभा के तरह परमानेंट बॉडी कहा जा सकता है, क्योंकि इसे डिजॉल्व नहीं किया जा सकता। यहां मेंबर्स का चुनाव स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली के मेंबर्स द्वारा किया जाता है। यह हाउस उस स्टेट के स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली के स्ट्रेंथ के एक तिहाई मेंबर्स को रिप्रेजेंट करता है, यानी इस हाउस में मेंबर्स की संख्या स्टेट की लेजिस्लेटिव असेंबली के मेंबर्स की संख्या का एक तिहाई होती है, लेकिन यह स्ट्रेंथ 40 से कम नहीं हो सकती।
हालांकि, संसद ने सिक्किम के लिए इसमें छूट दी थी। सिक्किम विधानसभा में कुल मेंबर्स की संख्या 32 है, इसलिए सिक्किम में लेजिस्लेटिव काउंसिल का निर्माण नहीं किया गया। इसके अलावा, लेजिस्लेटिव काउंसिल में एक तिहाई मेंबर्स को स्टेट के लोकल बॉडीज जैसे म्यूनिसिपैलिटीज, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड्स द्वारा इलेक्ट किया जाता है। और एक तिहाई मेंबर्स को स्टेट की लेजिस्लेटिव असेंबली के मेंबर्स द्वारा चुना जाता है। इसके अलावा, लेजिस्लेटिव काउंसिल का एक बार में सिर्फ एक तिहाई हाउस रिटायर होता है और उन सीटों के लिए नए मेंबर्स का इलेक्शन किया जाता है। इस हाउस में इलेक्शन के द्वारा 6 साल के लिए मेंबर्स को चुना जाता है, लेकिन यह हाउस परमानेंट होता है, यानी असेंबली की तरह इसे डिजॉल्व नहीं किया जा सकता।
दोस्तों, स्टेट लेजिस्लेटिव काउंसिल में मेंबर बनने के लिए मेंबर को इंडियन सिटीजन होना चाहिए और उसकी मिनिमम ऐज 30 साल होनी चाहिए। इसका मेंबर बनने के लिए मेंबर को मेंटली साउंड भी होना चाहिए, और वह किसी प्रॉफिटेबल पोजीशन पर नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, वह मेंबर किसी क्रिमिनल ऑफेंस के लिए पनिश नहीं हुआ होना चाहिए।
अगर किसी स्टेट में लेजिस्लेटिव काउंसिल का निर्माण नहीं होता है, तो वहां का लेजिस्लेटर, यूनिकैमरल लेजिस्लेटर कहलाता है, और अगर किसी स्टेट में दोनों हाउसेस का निर्माण होता है, तो वहां का लेजिस्लेटर, बाइकैमरल लेजिस्लेटर कहलाता है। फिर यह दोनों हाउसेस मिलकर स्टेट की पॉलिसीज पर डिस्कशन करती हैं और फिर फाइनल पॉलिसीज को गवर्नर के अप्रूवल के लिए भेजा जाता है।
तो दोस्तों, यह थी डिटेल जानकारी स्टेट लेजिस्लेटर के बारे में। हमने इस आर्टिकल में इसे काफी सरल भाषा में समझाने की कोशिश की है, ताकि हर कोई इसे आसानी से समझ सके। उम्मीद है कि इस आर्टिकल ने आपको स्टेट लेजिस्लेटर की बेहतर समझ दी होगी। अगर आपको इस आर्टिकल से कुछ नया सीखने को मिला हो, तो इसे शेयर करें और अपने सवाल और सुझाव कमेंट्स में जरूर बताएं